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सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानियां

Hindi Kahani हिंदी कहानी Angoothi Ki Khoj Subhadra Kumari Chauhan अंगूठी की खोज सुभद्रा कुमारी चौहान चैती पूर्णिमा ने संध्या होते-होते धरित्री को दूध से नहला दिया। वसंती हवा के मधुर स्पर्श से सारा संसार एक प्रकार के सुख की आत्म-विस्मृति में बेसुध-सा हो गया। आम की किसी डाल पर छिपी हुई मतवाली कोयल पंचम स्वर में कोई मादक रागिनी अलाप उठी । वृक्षों के झुरमुट के साथ चाँदनी के टुकड़े अठखेलियाँ करने लगे; परंतु मेरे जीवन में न सुख था और न शांति। इस समय भी, जबकि संसार के सभी प्राणी आनंदविभोर हो रहे थे, मैं कंपनी बाग में एक कोने में हरी-हरी दूब पर पड़ा हुआ अपने जीवन की विषमताओं पर विचार कर रहा था। पेड़ की पत्तियों से छन-छनकर नन्‍हें-नन्‍हें चाँदनी के टुकड़े जैसे मुझे बरबस छेड़-से रहे थे। मैंने आँखें बंद कर लीं; फिर भी मैं किसी प्रकार का शांति लाभ न कर सका। आज मैं बहुत दुखी था। वैसे बात थी तो बहुत छोटी; किंतु पके हुए घाव पर एक मामूली-से तिनके का छू जाना ही बहुत है। छोटी-सी बात पर ही मेरे हृदय में जैसी भीषण हलचल मची हुई थी, उसे मेरे सिवा कौन जान सकता था। इसी समय, कुछ युवतियाँ; मेरे पास से निकलीं। उ...